मैं आज भी वही हूँ ,जहाँ कल था ;
मैं अभी भी वहीँ हूँ , जहाँ पहले था ;
मैं आज भी चमक रहा हूँ
पहले भी चमकता था;
प्रकाश की निर्मल किरणों को ;
यूं ही बिखेरता रहा ;
मैं स्थिर हूँ , अचल हूँ,
फिर भी दुनिया मुझे ,
कभी उगता सूरज
तो कभी डूबता सूरज
कभी सुबह -शाम की लालिमा
तो कभी दिन की श्वेतिमा '
भोगोलिक परिस्थतियों में जन्में अलग-अलग नाम
इस दुनिया का सच बन जाते हैं'
मैं स्थिर , अचल सबकुछ देखता रहा ,
अलग-अलग सच के बीच रास्ता ढूँढता रहा ,
अंततः ,अपना कर्त्तव्य मान ,
सिर्फ प्रकाश बिखेरता रहा ,
दुनिया की ख़ुशी के लिए ,
मैं स्थिर सूरज ...............
कभी उगता और कभी डूबता सूरज कहलाता रहा...........
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