Friday, October 9, 2009

अनोखा सच.......

मैं आज भी वही हूँ ,जहाँ कल था ;
मैं अभी भी वहीँ हूँ , जहाँ पहले था ;
मैं आज भी चमक   रहा हूँ
पहले भी चमकता  था;
प्रकाश की निर्मल किरणों को ;
यूं ही बिखेरता रहा ;
                मैं स्थिर हूँ , अचल हूँ,
                फिर भी दुनिया मुझे ,
                कभी उगता सूरज
                तो कभी डूबता सूरज 
                कभी सुबह -शाम की लालिमा
                तो कभी दिन की श्वेतिमा '
                भोगोलिक परिस्थतियों में जन्में अलग-अलग नाम
                इस दुनिया का सच बन जाते हैं'
मैं स्थिर , अचल  सबकुछ देखता रहा ,
अलग-अलग सच के बीच रास्ता ढूँढता रहा ,
अंततः ,अपना कर्त्तव्य मान ,
सिर्फ प्रकाश बिखेरता रहा ,
दुनिया की ख़ुशी के लिए ,
मैं स्थिर सूरज ...............
कभी उगता और कभी डूबता  सूरज  कहलाता  रहा...........

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