Saturday, July 10, 2010

दोस्ती (Dosti - Friendship)

अनजान सी डगर पर ,अनजाने  हैं सफ़र पर
कहता  है कोई आकर ,एक हाथ जो बढाकर
मन  की किलकारियों को, प्यार के दामन को
वादों  से भरकर
साथ  जो चले हैं ,साथिया बनकर
हर  वादा हम निभायेंगे दोस्ती का दामन पकड़कर
हँसतें हैं दम भरकर ,रोते हैं साथ मिलकर
अपना  पराया भूलकर, मरतें  हैं एक दूजे पर
कहतें हैं दोस्ती है ,दोस्ती का गान कर-कर
अनजान सी डगर पर ,अनजाने  हैं सफ़र पर
कहता  है कोई आकर ,एक हाथ जो बढाकर 
जीवन की धूप-छाँव  को हरातें हैं, साथ मिलकर
दोस्ती की गुदगुदी वो हंसाती है आज भी रातभर
सभांला हैं एक-दूसरे को, मुसीबतों में आगे बढ़कर
पनपता है कोई रिश्ता दोस्ती का नाम लेकर
रिश्ता नहीं ,यह आस्था हैं ,जन्म लेती नहीं ख़ूनी रिश्तों से
विशवास की मिशाल जो ,पाया है जिसे मैंने
दोस्ती की गंगा में हाथ धोकर
अनजान सी डगर पर ,अनजाने  हैं सफ़र पर
कहता  है कोई आकर ,एक हाथ जो बढाकर

Thursday, March 25, 2010

अभिव्यक्ति ( voice of heart)

न जाने क्यों , आज मन इतरा रहा है
शायद दिल  कुछ कहना चाह रहा है
दिल की बांसुरी ,मन में थिरकन कर रही है
भावनओं का समंदर हिलोरें ले रहा हैं
जिह्वा व्याकुल है ,शब्द ढूंढ रही है
ग्रीष्म में भी बसंत सा एहसास हो रहा है
आँखों के आंसू दिल पर गिर रहे हैं
न जाने क्यों , आज मन इतरा रहा है
शायद दिल  कुछ कहना चाह रहा है
 होंठो पर प्यार की गुदगदी छा रही है
 मन  रंगों की होली खेल रहा है
दिल प्यार के रंग में सराबोर है
प्रकृति के सारे रंगों से
प्यार के झरने फूंट रहे हैं
इस झरने में डूबा जा रहा हूँ
इस डूबने में  भी सुखद एहसास है
मैं  अकिंचन  एक अनजानी -सी
भावना को  शब्द दे रहा हूँ
न जाने क्यों , आज मन इतरा रहा है
शायद दिल  कुछ कहना चाह रहा है

Wednesday, February 17, 2010

आतंकवाद

( छद्मता(chhadmta) = छदमता का मतलब ,रंग बदलने वाला ब्यवहार जैसे गिरगिट रंग बदलता है ,आज का इन्सान  हिपोक्रेट है -कहता कुछ है करता कुछ और है , अपने पर मुशीबत आये तो दुनिया गलत लेकिन खुद उसी दुनियां में हम अपने स्वार्थ के कारण दूसरों को परेशान करने से नहीं चूकते, हमारे  साथ कोई बेमानी करे तो वो गलत ,लेकिन हम दूसरों के साथ करें तो वो जीने का तरीका )
छद्मता की बात है ,
हर आदमी ,आदमी पर घात है ,
झिधर चले ,झिधर मुड़े,
हर मोड़ पर यही दिखे ,
आदमी ,आदमी से परेसान है ,
          प्रगति की आड़ में,
         स्वतंत्रता के नाम पर
         धर्म की तकरार है ,
हर मन में एक आतंक है,
स्वार्थ -धन ही लक्ष्य है ,
मैं बढूँ ,तुम गिरो ,
तुम गिरो ,मैं बढूँ
..............आज की छद्मता की यही चाल है,
             हर आदमी ,आदमी पर घात है ,
प्रेम का सन्नाटा ,नफ़रत की आबादी ,
कैसा यें जीवन ,कैसी यें बर्बादी ,
                  आतंक के प्रहार से ,
                  चीख तो गूँज उठी ,
नफ़रत की आबादी को दर्द भी हुआ
"हम एक हैं -हम एक हैं " जोश भी दिखा ,
 फिर छद्मता की बात है ,
पूरा युवा भारत एक कदम बढ़ने में परेशान है ,
जोश का आडम्बर है ,
वही नफ़रत की आबादी है ,
  प्रगति की आड़ में ,
  प्रेम और एकता के कब्र पर ,
 आतंकवाद का राज है.