मैं आज भी वही हूँ ,जहाँ कल था ;
मैं अभी भी वहीँ हूँ , जहाँ पहले था ;
मैं आज भी चमक रहा हूँ
पहले भी चमकता था;
प्रकाश की निर्मल किरणों को ;
यूं ही बिखेरता रहा ;
मैं स्थिर हूँ , अचल हूँ,
फिर भी दुनिया मुझे ,
कभी उगता सूरज
तो कभी डूबता सूरज
कभी सुबह -शाम की लालिमा
तो कभी दिन की श्वेतिमा '
भोगोलिक परिस्थतियों में जन्में अलग-अलग नाम
इस दुनिया का सच बन जाते हैं'
मैं स्थिर , अचल सबकुछ देखता रहा ,
अलग-अलग सच के बीच रास्ता ढूँढता रहा ,
अंततः ,अपना कर्त्तव्य मान ,
सिर्फ प्रकाश बिखेरता रहा ,
दुनिया की ख़ुशी के लिए ,
मैं स्थिर सूरज ...............
कभी उगता और कभी डूबता सूरज कहलाता रहा...........
भावनावों का सफ़र - मैं कोई कविता नहीं लिखता हूँ बस अपनी भावनाओं को शब्द देता जाता हूँ ,चाहे इन शब्दों की माला किसी को कविता लगे या कुछ और , मेरे लिए तो ये सिर्फ भावनाएं हैं जो मैं कह नहीं पाता इसलिए लिख रहा हूँ ..........और तब तक लिखता रहूँगा जब तक इन भावनाओं का सफ़र चलता रहेगा ..........................
Friday, October 9, 2009
Saturday, September 19, 2009
कर्मपथ
आँखों में सपने , शारीर पर मैले कपड़े,
हांथों में किताबें और सच्चे इरादे,
पैरों में लगी मिट्टी,धुल भरा चेहरा
ढूनती हुयीं आँखें , निहारता हुआ कहता
मैं भारत हूँ ,मुझे कोई गोद ले ले
पुकारती माँ भारती,
नए जोश , नए खून के सारथी ,
अरे नवयुवक तुझे माँ भारती पुकारती ,
इतना कठोर दिल तू न बन ,
मेरी चीख को अनसूना न कर,
आगे बढ़ ,मेरा सहारा बन
पथ है यें प्रेम का , सदभावना का
तू कर्म कर ,आगे बढ़ ,
कर्मपथ .....कर्मपथ ...कर्मपथ
यदि आप को यह कविता वास्तव में दिल से अछि लगी हो तो ,आगे आकर हमारा साथ दें ..........यें देश आपका इंतजार कर रहा है ........कर्मपथ को अपना बनाएं
हांथों में किताबें और सच्चे इरादे,
पैरों में लगी मिट्टी,धुल भरा चेहरा
ढूनती हुयीं आँखें , निहारता हुआ कहता
मैं भारत हूँ ,मुझे कोई गोद ले ले
विकास की दौड़ में छूटा हुआ बच्चा ,
जो दौड़ पाने में है कच्चा,
सहमा हुआ कहता ,
कोई हाथ मुझे फिर से उठा दे
मैं भारत हूँ ,मुझे कोई गोद ले ले .
सिसकती हुयी ,ठिठुरती हुयीपुकारती माँ भारती,
नए जोश , नए खून के सारथी ,
अरे नवयुवक तुझे माँ भारती पुकारती ,
इतना कठोर दिल तू न बन ,
मेरी चीख को अनसूना न कर,
आगे बढ़ ,मेरा सहारा बन
पथ है यें प्रेम का , सदभावना का
तू कर्म कर ,आगे बढ़ ,
कर्मपथ .....कर्मपथ ...कर्मपथ
यदि आप को यह कविता वास्तव में दिल से अछि लगी हो तो ,आगे आकर हमारा साथ दें ..........यें देश आपका इंतजार कर रहा है ........कर्मपथ को अपना बनाएं
Thursday, September 17, 2009
जन गड़ मन
हम भारतवाशी जन गड़ मन गाते हैं ,
शस्यश्यामला ,पतित पावन धरती की .
वर्षगांठ हर्षौल्लास मानते हैं ,
उत्तर -दछिड पूर्व -पशचिम
भारत माँ के चार बेटे ,
मिलकर आज जयगीत गाते हैं ,
बढ़ -बढ़ कर हम हिस्सा लेते ,
माँ के दमन को फूलों से भर rदेते ,
आज तिरंगा फैलाने को ,
तेरा मेरा अपना -पराया ,
सब भूल एक हो जाते हैं .
वन्दे मातरम - वन्दे मातरम ,
जय हिंद , जय हिंद के नारे ,
सोये हुए मन में ,
शक्ति भर , जाते हैं ,
गाँधी -सुभाष को करते याद
उनके ही गुड गाते हैं .
हम भारतवाशी जन गड़ मन गाते हैं ,
शस्यश्यामला ,पतित पावन धरती की .
वर्षगांठ हर्षौल्लास मानते हैं.
लिखते -लिखते अचानक
कलम रुक सी गयी
दिल मानों थम सा गया ,
आँखों के सामने सच्चाई का
अँधेरा सा छा गया ,
मुझे स्वार्थ में डूबे हुए लोग ,
आपस में लड़ते राज्य ,
तिरंगे के सामने कुछ नौकरसाह ,
मुट्ठी भर लोग दिखने लगे ,
शेष भारत सो रहा था ,
शायद वह छुटी मना रहा था ,
तिरंगे के जन्मदिन पर
घर की जन्मदिन पार्टी से भी कम
लोग दिख रहे थे .
.............................फिर भी रोता तिरंगा लहरा रहा था ,
हमें जगाने के लिए वह ,
जन गड़ मन गा रहा था ,
क्या सच में ;
हम भारतवाशी जन गड़ मन गाते हैं ,
शस्यश्यामला ,पतित पावन धरती की .
वर्षगांठ हर्षौल्लास मानते हैं ,
शस्यश्यामला ,पतित पावन धरती की .
वर्षगांठ हर्षौल्लास मानते हैं ,
उत्तर -दछिड पूर्व -पशचिम
भारत माँ के चार बेटे ,
मिलकर आज जयगीत गाते हैं ,
बढ़ -बढ़ कर हम हिस्सा लेते ,
माँ के दमन को फूलों से भर rदेते ,
आज तिरंगा फैलाने को ,
तेरा मेरा अपना -पराया ,
सब भूल एक हो जाते हैं .
वन्दे मातरम - वन्दे मातरम ,
जय हिंद , जय हिंद के नारे ,
सोये हुए मन में ,
शक्ति भर , जाते हैं ,
गाँधी -सुभाष को करते याद
उनके ही गुड गाते हैं .
हम भारतवाशी जन गड़ मन गाते हैं ,
शस्यश्यामला ,पतित पावन धरती की .
वर्षगांठ हर्षौल्लास मानते हैं.
लिखते -लिखते अचानक
कलम रुक सी गयी
दिल मानों थम सा गया ,
आँखों के सामने सच्चाई का
अँधेरा सा छा गया ,
मुझे स्वार्थ में डूबे हुए लोग ,
आपस में लड़ते राज्य ,
तिरंगे के सामने कुछ नौकरसाह ,
मुट्ठी भर लोग दिखने लगे ,
शेष भारत सो रहा था ,
शायद वह छुटी मना रहा था ,
तिरंगे के जन्मदिन पर
घर की जन्मदिन पार्टी से भी कम
लोग दिख रहे थे .
.............................फिर भी रोता तिरंगा लहरा रहा था ,
हमें जगाने के लिए वह ,
जन गड़ मन गा रहा था ,
क्या सच में ;
हम भारतवाशी जन गड़ मन गाते हैं ,
शस्यश्यामला ,पतित पावन धरती की .
वर्षगांठ हर्षौल्लास मानते हैं ,
Monday, September 14, 2009
मन की सूनी बगियाँ
महकनें लगीं हैं मेरे मन की सूनी जो बगियाँ ,
खिलनें लगीं हैं मुरझायीं वो कलियाँ ,
जैसे कोई आया ,आकर गया हो ,
मुरझायीं बगियाँ में पानी दे गया हो ,
फिर से जीने की तमन्ना दे गया हो ,
होंठ थिरकतें हैं, आँखें मचलतीं हैं ,
जैसे कोई हवा चलने लगी हैं ,
महकनें लगीं हैं मेरे मन की सूनी जो बगियाँ
खिलनें लगीं हैं मुरझायीं वो कलियाँ,
एहसासों कहानी ,बातों की जुबानी ,
कहना है मुश्किल ,बहकनें लगा हूँ ,
भवरों को देखो ,मडराने लगें हैं ,
किसे के आने की बातें करनें लगें हैं ,
महकनें लगीं हैं मेरे मन की सूनी जो बगियाँ ,
खिलनें लगीं हैं मुरझायीं वो कलियाँ.
Sunday, September 13, 2009
बरसात की बूँदें
कुछ लुढ़कती ,कुछ ठहरती ,
मानों एक दूसरे का पीछा करतीं ,
धरा पर धारा में बदलतीं ,
बचपन से कौमार्य का सफ़र ,
झटपट तय करतीं यें बूंदे .
कभी गुलाब की पंखुडियों पर ,
तो कभी ऊँचे नारियल पेड़ों पर,
रोमांच और आनंद से भरे वो दिन
आज धरती को सींचती
मनुष्य में जीवन का विस्तार का विस्तार करतीं
मेरा कौमार्य अमृत बन ,
धरा को खुशबू प्रदान करता ,
ग्रहड़ लग गया मेरे कौमार्य को ,
जिस मानव को मैं जीवन देती ,
ढल गया मेरा कौमार्य उसके प्रदुषण से ,
उदास , बिना कहे , बिना सुने ,
छमा की मूर्ति बन ,
चुपचाप समुद्र का आलिंगन करतीं
.
..................हाँ , मेरा बचपन ,
पत्तों पर गिरतीं निरंतर बूँदें ,कुछ लुढ़कती ,कुछ ठहरती ,
मानों एक दूसरे का पीछा करतीं प्रेम की आहट
यूं पलकों का झुंकना , आँखों का मचलना ,
अनजानी सी खुशबू का यूं जो महकना
महकते पलों को यूं जो सजोना
हंसती फुलझडी को आँखों में कैद करना ,
आँखों में सपनों की इस परछाई को ,
पलकों के नीचे दबाये रखना.
आँखों के समुद्र में गोता लगाना ,
लहरों के साथ बहार आना ,
और मुट्ठी खुली तो प्रेम के मोती पाना ,
यूं पलकों का झुंकना , आँखों का मचलना ,
मानों फिर से लहरों का आना ,
आसमान को छूने के लिए ऊपर उठना ,
फिर निचे गिर जाना ,
लहरों के प्रेम का अजब है नजारा
प्रेम ही जीवन और इसे ही पाना ,
लहरों के निरंतर प्रयास का यही है फसाना ,
यूं पलकों का झुंकना , आँखों का मचलना ,
आँखों के रस्ते ख्वाबों का दिखना ,
आँखें
ये आँखें हसांती हैं ,
ये आँखें रुलाती हैं ,
ये आँखें जिलाती हैं ,
ये आँखें क्या कर सकती हैं,
ये आँखें बता नहीं सकती हैं ..........
ये आँखें टूटे हुए दिलों को जोड़ती हैं ,
अनजाने से चेहरों को पास ला सकती हैं ,
ये आँखें तड़पाती हैं,
तड़पते हुए रूह के अन्दर झांक जाती हैं,
ये आँखें क्या कर सकती हैं,
ये आँखें बता नहीं सकती हैं ..........
ये आँखें पुचकारती हैं,
न चाहते हुए भी पास बुलाती हैं ,
आँखें बंद कर लो तो ,
सपनों में भी चली आती हैं ............
ये आँखें क्या कर सकती हैं,
ये आँखें बता नहीं सकती हैं ......
ये आँखें सफ़ेद सी चादर पर ,काली सी गोटी हैं ,
ये गोटी किधर जा सकती हैं,
ये चादर बता नही सकती हैं.
ये आँखें क्या कर सकती हैं,
ये आँखें बता नहीं सकती हैं ....
ये आँखें ममता करती हैं ,
ये आँखें प्यार करती हैं,
और जरूरत पड़े तो विध्वंश कर सकती हैं ,
ये आंखों की भाषा है,
जो आंखों ही आंखों में बात कराती हैं,
ये आँखें क्या कर सकती हैं,
ये आँखें बता नहीं सकती हैं ....
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