हांथों में किताबें और सच्चे इरादे,
पैरों में लगी मिट्टी,धुल भरा चेहरा
ढूनती हुयीं आँखें , निहारता हुआ कहता
मैं भारत हूँ ,मुझे कोई गोद ले ले
विकास की दौड़ में छूटा हुआ बच्चा ,
जो दौड़ पाने में है कच्चा,
सहमा हुआ कहता ,
कोई हाथ मुझे फिर से उठा दे
मैं भारत हूँ ,मुझे कोई गोद ले ले .
सिसकती हुयी ,ठिठुरती हुयीपुकारती माँ भारती,
नए जोश , नए खून के सारथी ,
अरे नवयुवक तुझे माँ भारती पुकारती ,
इतना कठोर दिल तू न बन ,
मेरी चीख को अनसूना न कर,
आगे बढ़ ,मेरा सहारा बन
पथ है यें प्रेम का , सदभावना का
तू कर्म कर ,आगे बढ़ ,
कर्मपथ .....कर्मपथ ...कर्मपथ
यदि आप को यह कविता वास्तव में दिल से अछि लगी हो तो ,आगे आकर हमारा साथ दें ..........यें देश आपका इंतजार कर रहा है ........कर्मपथ को अपना बनाएं