महकनें लगीं हैं मेरे मन की सूनी जो बगियाँ ,
खिलनें लगीं हैं मुरझायीं वो कलियाँ ,
जैसे कोई आया ,आकर गया हो ,
मुरझायीं बगियाँ में पानी दे गया हो ,
फिर से जीने की तमन्ना दे गया हो ,
होंठ थिरकतें हैं, आँखें मचलतीं हैं ,
जैसे कोई हवा चलने लगी हैं ,
महकनें लगीं हैं मेरे मन की सूनी जो बगियाँ
खिलनें लगीं हैं मुरझायीं वो कलियाँ,
एहसासों कहानी ,बातों की जुबानी ,
कहना है मुश्किल ,बहकनें लगा हूँ ,
भवरों को देखो ,मडराने लगें हैं ,
किसे के आने की बातें करनें लगें हैं ,
महकनें लगीं हैं मेरे मन की सूनी जो बगियाँ ,
खिलनें लगीं हैं मुरझायीं वो कलियाँ.
sundar jazbaaton ko sundar shabd diye hai aapne bhaiyya....likhte rahiye....
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