हम भारतवाशी जन गड़ मन गाते हैं ,
शस्यश्यामला ,पतित पावन धरती की .
वर्षगांठ हर्षौल्लास मानते हैं ,
उत्तर -दछिड पूर्व -पशचिम
भारत माँ के चार बेटे ,
मिलकर आज जयगीत गाते हैं ,
बढ़ -बढ़ कर हम हिस्सा लेते ,
माँ के दमन को फूलों से भर rदेते ,
आज तिरंगा फैलाने को ,
तेरा मेरा अपना -पराया ,
सब भूल एक हो जाते हैं .
वन्दे मातरम - वन्दे मातरम ,
जय हिंद , जय हिंद के नारे ,
सोये हुए मन में ,
शक्ति भर , जाते हैं ,
गाँधी -सुभाष को करते याद
उनके ही गुड गाते हैं .
हम भारतवाशी जन गड़ मन गाते हैं ,
शस्यश्यामला ,पतित पावन धरती की .
वर्षगांठ हर्षौल्लास मानते हैं.
लिखते -लिखते अचानक
कलम रुक सी गयी
दिल मानों थम सा गया ,
आँखों के सामने सच्चाई का
अँधेरा सा छा गया ,
मुझे स्वार्थ में डूबे हुए लोग ,
आपस में लड़ते राज्य ,
तिरंगे के सामने कुछ नौकरसाह ,
मुट्ठी भर लोग दिखने लगे ,
शेष भारत सो रहा था ,
शायद वह छुटी मना रहा था ,
तिरंगे के जन्मदिन पर
घर की जन्मदिन पार्टी से भी कम
लोग दिख रहे थे .
.............................फिर भी रोता तिरंगा लहरा रहा था ,
हमें जगाने के लिए वह ,
जन गड़ मन गा रहा था ,
क्या सच में ;
हम भारतवाशी जन गड़ मन गाते हैं ,
शस्यश्यामला ,पतित पावन धरती की .
वर्षगांठ हर्षौल्लास मानते हैं ,
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