Thursday, September 17, 2009

जन गड़ मन

हम भारतवाशी जन गड़ मन गाते हैं ,
शस्यश्यामला ,पतित पावन धरती की .
वर्षगांठ हर्षौल्लास मानते हैं ,
       उत्तर -दछिड   पूर्व -पशचिम
       भारत माँ के चार बेटे ,
       मिलकर आज जयगीत  गाते हैं ,
       बढ़ -बढ़ कर हम हिस्सा लेते ,
       माँ के दमन को फूलों से भर rदेते  ,
       आज तिरंगा फैलाने को ,
       तेरा मेरा अपना -पराया ,
        सब भूल एक हो जाते हैं .
 वन्दे मातरम - वन्दे मातरम ,
जय हिंद , जय हिंद के नारे ,
सोये हुए मन में  ,
शक्ति भर , जाते हैं ,
गाँधी -सुभाष को करते याद
 उनके ही गुड गाते हैं .
हम भारतवाशी जन गड़ मन गाते हैं ,
शस्यश्यामला ,पतित पावन धरती की .
वर्षगांठ हर्षौल्लास मानते हैं.
                  लिखते -लिखते  अचानक
                 कलम रुक सी गयी
                 दिल मानों थम सा गया ,
                 आँखों के सामने सच्चाई का
                 अँधेरा सा छा गया ,
                 मुझे स्वार्थ में डूबे  हुए लोग ,
                आपस में लड़ते राज्य ,
तिरंगे के सामने कुछ  नौकरसाह ,
मुट्ठी भर लोग दिखने लगे ,
शेष भारत सो रहा था ,
शायद वह छुटी मना रहा था ,
तिरंगे के जन्मदिन पर
घर की जन्मदिन पार्टी से भी कम
लोग दिख रहे थे .
.............................फिर भी रोता तिरंगा लहरा रहा था ,
                            हमें जगाने के लिए  वह ,
                            जन गड़ मन  गा रहा था ,
क्या सच में ;
हम भारतवाशी जन गड़ मन गाते हैं ,
शस्यश्यामला ,पतित पावन धरती की .
वर्षगांठ हर्षौल्लास मानते हैं ,

                  

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